Saturday, June 20, 2015

 महत्त्व- नवरात्र  


 चार प्रधान नवरात्रे बताये गए हैं जो कि हमारे चार पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक हैं। इन चार में से दो विनियोग द्वारा विलीन है - अर्थ को धर्म में, काम को जिज्ञासा बना कर मोक्ष में अंतर्भूत है। पुरुषार्थों के प्रतीक दो ही सर्वमान्य नवरात्रे रह जाते हैं। इन की सर्वमान्यता का कारण जीवन की प्राणपद ऋतुएं हंै - आश्विन से शरद और शीत, चैत्र से बसंत और ग्रीष्म के युगल विश्व के लिए एक वरद मिथुन जोड़ा बन जाते हैं; एक से गेहूं यानि अग्नि और दूसरे से चावल यानि सोम। इस प्रकार प्रकृति माता इन दोनों नवरात्रों में जीवन पोषक अग्नि और सोम के युगल के सादर उपहार देती है। आश्विन मास के पहले 15 दिन मातृ पक्ष के नवरात्र के रूप में मनाते हैं। 
इस लिए ये दोनों नवरात्र नव गौरी, परब्रह्म श्रीराम की शक्ति, दुर्गा या आद्या महालक्ष्मी पूजा के रूप में मानते हंै। वह आद्याशक्ति; एकमेव एवं अद्वितीय होते हुए भी अपने भक्तांे को - काली, तारा, षोडसी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, एवं कमला - इन दश महाविद्याओं के रूप में वरदायनी होती है; जो भोग और मोक्ष दोनों का मार्ग बताती हंै, उसे ही महाविद्या कहते हैं और वही जगन्माता अपने भक्तों के दुःख दूर करने के लिए शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, तथा सिद्धरात्रि - काल भेद और लीला भेद से वही अद्या शक्ति दुर्गा के नौ अवतारों के रूप में अवतरित होती है, जिसे हम नवदुर्गा कहते हंै जो कि दुर्ग के सामान सुविधा और सुरक्षा दे कर दुर्गति का नाश करती है। सत्व, रजस् एवं तमस् इन तीन गुणों के आधार पर वह महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के नाम से लोक में प्रसिद्ध हंै। नवरात्र में हम अखंड दीप जलाकर अपनी इस नव संख्या पर रात्रि के अंधकार के छाये हुये आवरण को हटाकर आत्म विजय के उत्सव विजय दशमी के रूप में मनाते हंै। यह नव संख्या अखंड, अविकारी, एक रस ब्रह्म ही है। नौ को किसी भी संख्या से गुणा कीजिये देखेंगे की नौ ही नौ अखंड ब्रह्म की तरह की चमकते रहेंगे। यही दुर्गा माता की नव विद्या नौ रूप में नौ शक्तियां हैं। 
ंऋतु- परिवर्तन के समय विभिन्न रोग, महामारी, आदि के निवारणार्थ शारदीय तथा वासंती नवरात्र दुर्गा पूजा प्रशस्त है। देवी की आराधना के सम्बन्ध में जिन सामग्रियों का विधान या वर्णन है, वे सभी अधिकतर औषधियां हंै। नीम के पत्ते, हरिद्रा , जायफल, गूगल, धूप, भोजपत्र, चन्दन, तेल, घृत, अग्नि, कपूर, जौं के अंकुर, ये सभी पदार्थ स्वास्थ्य संवर्धन, रोगशमन, और कीटाणु नाशन की शक्ति रखते हैं। विधिपूर्वक स्थापित कलश में अर्पित द्रव्यों से जल अमृतमय हो जाता है जो तीन महीने बाद सर्व पाप-रोगनाशक महाऔषधि हो जाता है, जिसके द्वारा महामंत्रों से अभिषेक किया जाता है। इसका आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सीय परीक्षण हो चुका है। इस प्रकार धार्मिक उपासना के साथ व्रत रूप में हमारे जीवन का संरक्षण का अचूक उपाय रखा गया ह

No comments: