Saturday, June 20, 2015

विधि श्राध


 श्राद्ध कब करना चाहिये -  आश्विन मास कृष्ण पक्ष केे 15 दिन, हर मास की अमावस्या, किसी मंगल कार्य के अवसर पर, ग्रहण आदि पर्व में, पूर्वज की मृत्यु तिथि, तीर्थ यात्रा में भी श्राद्ध करना कल्याणकारी है। कृष्ण पक्ष आश्विन मास में सूर्य सात पीढि़यों के समकक्ष कन्या राशि में रहने के दौरान कन्यागत या कनागत या श्राद्ध मनाने का नियम है । इस महीने के दोनों और 6-6 महीने रहते हैं। यह सात पीढि़यों की श्रृंखला के समतुल्य हो जाता है यह पखवाड़ा नित्य श्राद्ध पक्ष है।
श्राद्ध के दिन - स्नान अवश्य करें, नित्य पूजा न छोड़े, श्राद्ध के भोज के बाद ही स्वयं भोजन करें। तेल मालिश, क्रोध, कठोर भाषा, झूठ बोलना, वाद-विवाद, दिन में सोना, अधिक भोजन, शराब पीना, जुआ खेलना, मैथुन, आदि नहीं करने चाहियें।
श्राद्ध समय - सुबह नाश्ते के समय से लेकर दोपहर से पहले ही संपन्न करें।
कैसे करें - किसी सुयोग्य ब्राह्मण से तर्पण करवाना चाहिए अन्यथा सामने खाद्य पदार्थ परोस कर हाथ में जल, काले तिल, जौ, रोली और फूल लेकर पितरों को जलांजलि देनी चाहिए। जलांजलि पूर्वोक्त्त सभी छह पूर्वजों (जीवित को छोड़ कर) देनी चाहिए।
श्राद्ध का भोजन - घी में पकाये हुए, दूध, घी से बना मिष्ठान जरूर हो। घर में भोजन बना कर श्राद्ध न कर सकते हों तो बाजार से तैयार भोजन लेकर, स्त्री को मासिक धर्म हो, ग्रहण का सूतक हो तो बिना पकी भोजन सामग्री से श्राद्ध कर सकते हैं। उसमें तुलसीदल या कुश जरूर रखें। लेकिन श्राद्ध के लिए केवल नगद पैसे देना वर्जित है।
श्राद्ध का भोजन किसे - याज्ञवल्क्य ऋषि अनुसार विद्वान ब्राह्मण, आदरणीय व्यक्ति, नाती, बहनोई, कोई भी सदाचारी युवक, कोई भी गृहस्थ, निर्धन, बंधु बांधव को भोजन कराया जा सकता है। भोजन गाय, कुत्ता, कौवा, और अग्नि के लिए भी निकालना चाहिए।
जब तिथि ज्ञात न हो - श्राद्ध पक्ष की चतुर्दशी को ऐसे लोगों का जिनकी मृत्यु के बारे में कुछ पता न हो, युद्ध, बाढ़, आदि में मारे गए लोग या जिनका दाह संस्कार न किया जा सका हो, अमावस्या को सब पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।

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