Saturday, June 20, 2015

महत्त्व - दुर्गा के नौ अवतार 

1.शैलपुत्र्र्री - प्रथम नवरात्री के दिन माँ दुर्गा के पहले स्वरुप शैलपुत्र्र्री की पूजा की जाती है। पर्वत राज हिमालय के घर पुत्री के रूप अवतरित होने के कारण माँ का नाम शैलपुत्री पड़ा  इनका वाहन वृषभ - बैल है। दाहिने हाथ में त्रिशूल और और बाएं हाथ में कमल के फूल शोभायमान हंै। अपने पूर्व जन्म में ये दक्ष प्रजापति की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थी तब इनका नाम सती था और अपने पिता के यहाँ भगवन शंकर का अपमान देखकर इन्हांेने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर लिया था। पूर्व जन्म की भांति इस जन्म में भी वे शिवजी की अर्धांगनी बनीं। सिद्ध पुरूष इस दिन अपने मन को मूलाधार चक्र में लगाकर योगसाधना करते हंै। इनकी शक्ति अनंत है और वे भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली हंै। 
2. ब्रह्मचारिणी - माँ दुर्गा नवशक्तियों में दूसरा स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एव अत्यंत भव्य ब्रह्मचारिणी का है। यहाँ ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है। अपने पूर्व जन्म में वे हिमालय के घर उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्हांेने भगवान शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत दुष्कर व कठिन तपस्या की थी। इसी तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। 
3.माँ चन्द्र घंटा -  माँ भगवती की तीसरी शक्ति, माँ चन्द्र घंटा का स्वरुप सौम्य और शांति से परिपूर्ण परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनका वाहन सिंह है। इनकी दस भुजाएं हैं और सभी में अस्त्र शस्त्र सुशोभित हैं, शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला तथा मस्तक पर अर्ध चन्द्र है; इसी कारण इन्हें चन्द्र घंटा देवी कहा जाता है;  दुष्टों का दमन करने में सदैव तत्पर रहने वाली, रण में घंटे की टंकार से असुरों का मर्दन करने वाली ये देवी आसुरी शक्तियों का नाश करती हैं। इस दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में प्रवेश होता है और माँ की कृपा से उसे औलोकिक वस्तुओं के दर्शन होते हंै,े तथा  समस्त पाप व बाधाएं नष्ट हो जाती हैं। 
4कूष्माण्डा - माँ दुर्गाजी के चैथे स्वरुप माँ कूष्माण्डा की आठ भुजाएं हंै। इनका वाहन सिंह है। अपनी मंद मुस्कान द्वारा अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हे कुष्मांडा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड व सृष्टि का अस्तित्व था ही नहीं, चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था। तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अतः यही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतर के लोक में है तथा शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के सामान दैदीप्यमान और भास्वर है, जिससे दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। इनके तेज की तुलना इन्हीं से की जा सकती है। कुम्हड़े की बली इन्हें अति प्रिय है इस कारण भी ये कूष्माण्डा कही जाती हैं। 
5स्कंदमाता - माँ दुर्गा के पांचवे स्वरुप स्कंदमाता देवी के चार भुजाएं हंै। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हंै तथा नीचे वाली भुजा से वर प्रदान करती हंै। इनके विग्रह में भगवन स्कंदजी बाल रूपमें इनकी गोद में बैठ होते हंै। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं और चित्रवृतियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरुप की ओर अग्रसर होता है। माँ स्कंदमाता की उपासना से मृत्यु लोक में ही भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं और  उसे परम शान्ति और सुख का अनुभव होने लगता है। सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांति संपन्न हो जाता है।
6कात्यायिनी - माँ दुर्गा के छठे स्वरुप का नाम कात्यायिनी है जो अतयंत भव्य और दिव्य है। इनका वाहन सिंह है तथा ा वर्ण स्वर्ण के सामान चमकीला व आठ भुजाएं हैं। दाहिने तरफ ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। बांयें तरफ ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। महर्षि कात्यायन ने भगवती की बहुत वर्षों तक तपस्या की, उनकी इच्छा थी कि माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें, भगवती ने उनकी ये इच्छा स्वीकार की इसी कारण से ये कात्यायनी कहलायीं। नवरात्री के छठे दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है।  अमोघ फलदायिनी माँ कात्यायनी का उपासक निरंतर इनके सान्निध्य में रहकर परम पद पाता है।  
7 कालरात्रि - माँ दुर्गा की साँतवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हंै। माँ कालरात्रि का स्वरुप देखने में अत्यंत भयानक है। लेकिन ये सदैव सुख फल देने वाली इसी कारण इनका एक नाम शुभंकरी भी है। अतः भक्तों को इनसे किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रा चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरुप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी, अक्षय पुण्य लोकों की प्राप्ति, उसके समस्त पापों और विघ्नों का नाश, अग्नि, जल, जंतु, शत्रुभय इत्यादि से सर्वथा मुक्त हो जाता है। 
8 महागौरी - माँ भगवती का आठवां स्वरुप महागौरी का है। इनका अत्यंत गौर वर्ण होने के कारण इनका नाम महागौरी पड़ा इनके चार भुजाएं हंै। इनके ऊपर दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के हाथ में वर मुद्रा है। इन्हांेने अपने पार्वती रूप में भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की, इनकी तपस्या से संतुष्ट होकर जब भगवान शंकर ने इनको गंगा जी के पवित्र जल से मल मल कर धोया, तब ये विद्युत प्रभा के सामान अत्यंत कांतिमान और गौर वर्ण हो गयीं। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा। माँ महागौरी की उपासना करने से -भक्तों के सभी प्रकार के क्लेश समाप्त हो जाते हंै, अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती है तथा असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। 
9सिद्धिदात्री - माँ दुर्गा जी की नवीं शक्ति सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं- दाहिने तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। सृष्टि में सिद्धिदात्री माँ कमला ही धन-धान्य की प्रतीक, जगत को संचालित करने वाली हंै। समुद्र मंथन के समय भी सिद्धिदात्री देवी ने ही असुरों को भ्रम में डाला था। ये देवी भगवान विष्णु की अर्धांगनी हैं। नवें दिन सिद्धिदात्री देवी की पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने से सभी सिद्धियां प्राप्त होती हंै तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।  








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