Saturday, June 20, 2015

                             श्राद्ध का महत्त्व
वैदिक धर्म में खुद सहित सात पीढि़यों तक सपिण्डता अर्थात शरीर को पैतृक गुण धर्मों का अस्तित्व माना गया है। वेद कहते हैं कि हमारे शरीर का निर्माण जिस शुक्र अर्थात सह से हुआ है, उसके 84 अंश होते हंै, उनमें से 56 अंश हमारे पूर्वपुरुषों के और शेष 28 अंश हमारे खुद के यानि स्वतंत्र हैं। अपने पूर्वजों में से लिए गए 56 अंशों में से 21 हमारे माता-पिता से, 15 दादा से, 6 पड़ दादा से, 3 पांचवें पूर्व पुरुष और 1 छठे पूर्वज से लिया होता है। इन्हीं संतान सूत्रों के लगातार संचलन से अपने से सातवीं पीढ़ी में ये श्रृंखला समाप्त हो जाती है, क्योंकि यहाँ पूर्वजांे के गुणसूत्र नगण्य हो जाते हंै। 
श्राद्ध की परिभाषा - वैदिक चिंतन धारा में श्रद्धा एक ऐसी भावना है, जो अतिशय प्रेम और विश्वास के समन्वय से बनती है। इसी श्रद्धा का जब देवताओं को समर्पण किया जाता है तो इसको भजन, और जब पितरों को समर्पण किया जाता है तो वह श्राद्ध कहलाता है। इन पितरों की स्मृति में श्रद्धापूर्वक किया गया दानादि कर्म ही श्राद्ध है। अतः पूर्वजों की स्मृति में भोजन, दान के आलावा पेड़ लगाना, किसी रोगी या असहाय की शारीरिक या आर्थिक सहायता करना, पुस्तक, वस्त्र आदि दान भी श्राद्ध के अंतर्गत आता है। श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर आयु, बल, कीर्ति, तेज, धन, पुत्र, स्त्री, और आरोग्य प्रदान करते हैं। पितृगण के श्राद्ध व तर्पण न करने के पाप से मानव के शरीर से रक्त का शोषण होता है। असंतोष, बरकत में कमी, और उनके वंश की बेल आगे चलने में भी बाधा रह सकती है। 
द्वारा दिया भोज्य उन्हीं को बिना किसी गड़बड़ी के पीछे बताये गए गुणसूत्र के आधार पर श्राद्ध के माध्यम से उनके सूक्ष्म शरीर को उनका तृप्ति भाग पहुंचता है। स्थूल शरीर को तो स्थूल भोजन ही दिया जायेगा। जो लोग प्रमाण के आभाव में मरणोपरांत जीवन के अस्तित्व को नकारते है तथा हिन्दू धर्म की श्राद्ध व संस्कारों की परम्पराओं को अन्धविश्वास बताते हैं उनसे यदि पूछा जाये कि क्यों - वे भारत रत्न, परमवीर चक्र, विक्टोरिया क्रॉस जैसे सम्मान मरणोपरांत देते हैं। मरने के बाद गांधी जयंती मनाते हैं, शहीदों के स्मारक और पार्क बनाते हंै, तोपों की सलामी देते हैं। 

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