महत्वः छोटी दिवाली
अनंत/नरक चतुर्दशी - त्रियोदशी की रात्रि १२ बजे से ही ब्रह्माण्ड चन्द्र नाड़ी से सूर्य नाड़ी की तरफ चलता है जिससे उत्पन्न विकिरण ;त्ंकपंजपवदद्ध की गरम ऊर्जा से वातावरण तामसिक तरंगों सेे प्रदूषित हो जाता है तथा पाताल से भी उसी प्रकार की रजस् व तमस् ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती हंै। इन तरंगों के प्रभाव को बेअसर करने के लिए सुबह स्नान कर के मिट्टी के बर्तन में घी के दीपक जला कर पूजते हैं। दीपक की अग्नि तत्व की ऊर्जा की किरणों की तरंगे नरक से उत्पन्न तामसिक ऊर्जा कोशिकाओं के सुरक्षा कवच को, नकारात्मक तरंगो व वातावरण में रज-तम कणों का विध्वंस व नाश कर देती हैं। हर मास की चतुर्दशी वैसे भी विध्वंस के देवता भगवान शिव के रूद्र रूप का दिन माना जाता है। इसलिए इस दिन आत्मा किसी भी शुभ गतिविधि को नए सिरे से शुरू करती है।
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